कोरोना काल से उबरने में रुकावट के नए नियम

मार्च 2020 से कोरोना की चपेट में आने के बाद अधिकतर लोग लॉकडाउन में अपने व्यापार से हाथ धो बैठे। खर्च में कटौती भी सम्भव न थी, क्योकि सरकार भी कह रही थी दूसरों की सहायता करें, बस एक आस थी कि जब भी व्यापार खुलेगा तो शून्य से शुरुआत होगी और परिश्रम से पुनः अर्जित कर सकेंगे जिसे खोया है। भारत की सबसे विश्वशनीय आय का स्रोत कृषि क्षेत्र से जुड़े व्यवसाइयों का है। उत्तर प्रदेश सरकार जब धान खरीद का लक्ष्य 50 लाख मीट्रिक टन रखती है और 55 लाख मीट्रिक टन खरीद करती है और अपनी पीठ थपथपाती है तो इसका मतलब यह नही है कि इतनी ही पैदावार हुई और सरकार ने सब एमएसपी पर खरीद लिया, और किसान समृद्ध हो गया, सरकार की सोच से कहीं अधिक पैदावार होती है, लगभग 150 लाख मीट्रिक टन। अब वो 100 लाख मीट्रिक टन अनाज का वितरण अन्य प्रदेशों में हो जाता था, और उस व्यवसाय से जुड़े लाखों लोगों की आस भी इसी सीजन से थी कि कोविड19 से उठने में उनकी सहायता इसी से होगी। लेकिन अनलॉकडाउन से ठीक पहले सरकार द्वारा लाये गए कृषि बिल से सब खत्म हो गया, जहां एक ओर अभी भी किसान उसी हालत में है जहां पहले था लेकिन सरकारी तंत्र से जो आम व्यापारी उसे बचाता था, अब तो उसकी भी हालत खराब हो रही है। 2024 में सरकार आएगी या नही आएगी इसकी भविष्यवाणी तो नही की जा सकती लेकिन जितने भी कृषि व्यापार से जुड़े लोग और उनके परिवार है उनका कुछ न कुछ फ़र्क़ तो अवश्य पड़ेगा। मैं आज भी सरकार के कार्य का समर्थन करता हूँ कि उन्होंने किसानों के बारे में सोच दिखाई लेकिन किसानों के साथ उससे जुड़े व्यवसायियों के बारे में भी उन्हें सोचना चाहिए।। मन व्यथित, अंतर्मन कुंठित, भाव नगण्य, व्यापार नीरस, सोच अग्रणी, खर्च शून्य, हाथ खाली, आने वाली दीवाली, बच्चे व्याकुल, बड़े विचलित, समय अनुकूल, नियम प्रतिकूल।। जय माता दी।

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